
सुनो रे पपुआ, संसद तुम्हारे बाप, दादी या परनाना की नहीं
घोटालों को नॉर्मलाइज़ करनेवाली पार्टी आजकल विथड्रावल सिम्पटम से जूझ रही है क्योंकि ‘जो घोटाले करते नहीं थे, उनसे घोटाले ‘हो जाते’ थे,’ उनका घोटालों से दूर होना कष्टदायक तो है ही।
घोटालों को नॉर्मलाइज़ करनेवाली पार्टी आजकल विथड्रावल सिम्पटम से जूझ रही है क्योंकि ‘जो घोटाले करते नहीं थे, उनसे घोटाले ‘हो जाते’ थे,’ उनका घोटालों से दूर होना कष्टदायक तो है ही।
कोई लक्ष्मणसूर्य पोहा टाइप इतिहासकार ये न कह दे कि कस्तूरबा गाँधी वाक़ई में इतालवी महिला थी जो महात्मा गाँधी से दक्षिण अफ़्रीका प्रवास के दौरान मिली थी और दोनों में प्रेम हो गया।
यहाँ न तो दलित मरा, न मुसलमान। उल्टे तथाकथित दलितों ने पुलिस वाले की जान ले ली क्योंकि उन्हें लगा कि वो जान ले सकते हैं। ये मौत तो ‘दलितों/वंचितों’ का रोष है जो कि ‘पाँच हज़ार सालों से सताए जाने’ के विरोध में है।
मोदी-विरोध में ये पत्रकार गिरोह इतना गिर चुका है कि कल को मोदी कह दे कि बच्चे अपने माँ-बाप की पैदाइश होते हैं, तो ये कहने लगेंगे कि ‘नहीं, हम तो माओ के प्रीजर्व्ड सेमेन से जन्मे हैं’।
हो सकता है कि उमैया के कानों में कोई इयरफोन नहीं रहा हो, लेकिन ये कौन तय करेगा कि बिना देखे ही उसे सत्य मान लिया जाए? फिर अगले पेपर में दस लोग हिजाब और बुर्क़े में आ जाएँ, दस लोग बंदर-टोपी पहनकर आ जाएँ और कहें कि ‘उसे तो नहीं रोका, हमें क्यों रोक रहे’, तो यूजीसी क्या कहकर अपना पक्ष रखेगी?
आयुष्मान खुराना की दाद देनी होगी कि ये अदाकार कहानियाँ कितनी शिद्दत से चुनता है। आज के दौर में, और पिछले तीन दशक में, मुझे इससे बेहतर कहानियाँ पकड़ने की कन्सिस्टेन्सी किसी भी और कलाकार में नहीं दिखी है।
जहाँ कॉन्ग्रेस जीती है, और जहाँ सरकार बना रही है, वहाँ उसने सीधे सेंध मारी है। वो उसकी जीत कैसे नहीं है? जीतना किसको कहते हैं? यही जीत है। जीत जब अरुणाचल में सरकार बनाना है, जब कर्नाटक में सरकार बनाना है, ढाई साल बाद बिहार में सरकार बनाना है, पूरे नॉर्थ ईस्ट में सरकार बनाना है, तो फिर राजस्थान और मध्यप्रदेश भी जीत है।
This is absurd because a party and its leader, who rely on the slogan that literally includes ‘development for all’, and are working tirelessly without a shred of corruption or irregularity, has to get down in the mud to wrestle a pig and eventually lose!
गाली और सेक्स सीन यथार्थवादी चित्रण से बहुत दूर दर्शकों की जननेंद्रियों को थोड़ी देर के लिए गुदगुदी देने के अलावा किसी काम के नहीं।
अगर विपक्ष इस बात पर फोकस्ड है कि किसने अपनी पत्नी से बात नहीं की, किसका बाप किसको छोड़कर चला गया, तो फिर चुनाव महज़ औपचारिक कार्यक्रम बनकर सिमट जाएँगे, जो होंगे ज़रूर पर उसका परिणाम कुछ भी नहीं होगा।